राजनारायण: बदनाम बेखौफ नेता
प्रधानमंत्री की बहुराष्टï्रीय भाषण-भंगिमा पर कुछ लोग मोहित हैं। कुछ को लालू की लपक झपक मोहित करती है। विविधता भरा देश है, भारत। यहां के धर्म प्रमुख उत्साहित होकर दिखाते हैं कि उनके अपने आराध्य हनुमानजी पेड़ उठाकर देश के कुछ अन्य श्रद्घालुओं के प्रिय को मारने दौड़ रहे हैं। अपनी अपनी सोच है। किसी को पौराणिक पवनसुत सदैव दुष्टï दलन करते दिखाई देते हैं। अपनी अपनी सोच है। संघर्षशील समाजवादी ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय संभाला । उन्होंने डाक्टरों को बिनमांगी सलाह दे डाली कि शल्य चिकित्सा करने से पहले बजरंगबली को याद करें। बखेड़ा खड़ा हुआ। मंत्री की खिल्ली उड़ाई गई। उन दिनों टी वी सशक्त इलेक्ट्रानिक मीडिया के रूप में विकसित नहीं हुआ था। सोशल मीडिया जन्मा नहीं था। आज संवाद माध्यम सक्षम हैं, अत्याधुनिक। बुद्घिमान और बुद्घिजीवी कहलाने वाली बिरादरी में शामिल उत्साहित भीड़ को सबने उस धर्म प्रमुख क ा साक्षात्कार प्रस्तुत करते पाया, जिसने हनुमानजी के हाथ में पेड़ थमा कर दौड़ लगवा दी। इस महत्वपूर्ण विषय पर शास्त्रार्थ का सीधा-प्रसारण होता रहा। राजनीति को निचोड़कर मिले या धर्म को दुहकर दौलत का मालपुआ लक्ष्य है। इसलिए महाबली हनुमान को कथित शत्रु के पीछे दौड़ाते हुए गंभीर बहस जारी है। तर्कशास्त्र- शिरोमणि व्यस्त हैं। उनका प्रचार-प्रसार करने वाले मस्त हैं। ऐसे में उस समाजवादी की याद आना चाहिए, जिसे हनुमान का ध्यान करने का बिनमांगा परामर्श देने पर फूहड़ सिरफिरा और जाने क्या क्या कहा गया। 38 वर्ष पूर्व जिस संघर्षशील राजनीतिक को अधपागल और असंभ्रात कहा जा रहा था, उसने धर्म को वोट के लिए कतई और कभी, किंचित भी इस्तेमाल नहीं किया था। उस व्यक्ति का नाम था-राज नारायण। समाजवादी कार्यकर्ता राज नारायण को चिंतक डा राम मनोहर लोहिया का हनुमान कहा करते थे। मंत्री राज नारायण के सिर पर बंधे हरे वस्त्र को व्यंग्यचित्रकार लहराता हुआ दिखाते। कुछ इस तरह मानों वह इंसान के रूप में वानर सेना का सदस्य हो। इतिहास की विवशता यह है कि वह अपने बारे में स्वयं कुछ नहीं कहता। इतिहास की ताकत यह है कि फर्जी दलीलों से उसे मेटा और मिटाया नहीं जा सकता। वाम बुद्घिजीवी जानते होंगे कि ई एम एस नम्बूदिरिपाद पत्नी के साथ केरल के प्रसिद्घ मंदिर गए। आलोचकों ने मखौल उड़ाया-माक्र्सवादी ने अपना ब्राह्मïणवाद दिखाया। ईएमएस ने छोटा सा किंतु संयत उत्तर दिया-माक्र्सवादी होने के साथ मैं पति भी हूं। उल्लेखनीय है कि ईएमएस मंदिर के बाहर ही रुक गए थे। इतिहास को अपने खास रंग की कूची से रंगने का इरादा रखने वाले बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए अब कौन याद करेगा कि काशी के विश्वनाथ मंदिर में अनुसूचित जाति के प्रवेश के लिए राजनारायण की अगुवाई में आंदोलन हुआ था। डा ़ भीमराव आंबेडकर ने माहाड में सत्याग्रह किया। नाशिक शहर के काला राम मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए आंदोलन किया। महात्मा गांधी ने निर्णय किया कि जिस मंदिर में हरिजनों को प्रवेश नहीं मिलेगा, वे स्वयं भी नहीं जाएंगे। अछूतोद्घार और सामाजिक समता के इन उदाहरणों को इतिहास और पाठ्यपुस्तकों के किसी पन्ने पर पढ़ा जा सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार या सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय की किसी पोथी में यह पढऩे नहीं मिला कि राज नारायण नाम के व्यक्ति ने पूरे समुदाय को धर्म से जोडऩे रखने के लिए काशी विश्वनाथ के मंदिर में उस समुदाय को प्रवेश दिलाया, जिसे अछूत माना जाता था।
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आज की दूसरी चिंता है, राजनीति के अपराधीकरण की। देश को स्वतंत्रता मिली तब मुंबई के निकट कल्याण-डोम्बिवली कस्बे और उपनगर की हैसियत रखते थे। तीन छोर से समुद्र की लहरों से टंकी व्यापारधानी मुंबई में बाहर से रोटी की तलाश में आने वाले मज़दूरों की मेहनत और काले कारनामों और काले धन सहित अनेक कारणों की बदौलत फूलती गई। वर्ष 2015 में कल्याण-डोम्बिवली महानगर पालिका का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं। नगर निगम के चुनाव में जीते नगर सेवकों में एक दर्जन दागदार उस पार्टी से हैं जो अव्वल नंबर आई। प्रदेश और देश को नेतृत्व सौंपने वाली पार्टी के 11 दागी जीतकर आए। दोनों प्रदेश और देश में मिलकर सरकार चला रहे हैं। इनके नाम हैं शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी। इसके पूर्व जिस पार्टी की सत्ता थी जिसने देश पर लगभग पांच दशक राज किया। महाराष्टï्र प्रदेश में सत्ता पर कांग्रेस और उससे छिटक कर बनी राष्टï्रवादी कांग्रेस पार्टी का बरसों एकाधिकार रहा। इन सब दलों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने अवैध निर्माण से अरबों रुपए की कमाई की। किसने किस के अवैध निर्माण को संरक्षण दियाï प्रश्न यह भी है कि अतिक्रमण क्यों नहीं तोड़े जाते और अपराधी दंडित क्यों नहीं होते? यह प्रश्न ही नहीं पूछा जाता है, जबकि इसका उत्तर आसान है। अतिक्रमण पर कार्रवाई न अतीत में हो सकी और न अब कोई संभावना है। ध्यान दें दागी निर्वाचित चेहरों और उनकी संख्या पर। बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश ़ ़ ़किस राज्य का नाम शामिल नहीं हैं जहां ऐसे व्यक्ति निर्वाचित होकर आते हैं जिनके विरुद्घ पुलिस ने मामले दर्ज हुए? उनका बाल बांका नहीं हुआ। चुनकर आते हैं। नहीं भी आए तब भी जमानत पाते हैं। स्वतंत्र नागरिक की तुलना में अधिक अभय के साथ घूमते हैं। राज नारायण जैसा कोई जन प्रतिनिधि नहीं, जो इस गंठजोड़ का भांडा फोड़े। अपराधी-राजनीतिक मिलीभगत के पीछे राज नारायण जी पागलों की तरह हाथ धोकर पड़ जाते थे।
राजनीतिक द्वेष के कारण मामले दर्ज कराने की समस्या अपनी जगह है। दुहाई दी जाती है कि सत्ता प्रतिष्ठïान के प्रबंधक निजी या राजनीतिक शत्रुता के कारण विरोधियों पर झूठे मामले लाद देते हैं। गंगा की तरह पवित्र होने का दावा करने वाले असलियत जानते हैं। वे जानते हैं कि गंगा की तरह ही प्रदूषित हैं फिर भी झूठी सौगंध उठाकर गंगा का नाम अपवित्र करने से नहीं चूकते। आज़ादी के बाद ऐसे कई लोग चुनाव में उतरते रहे हैं। जीते भी हैं। हालां कि यह सही है कि सभी राजनीतिक हत्या, अपहरण, तस्करी या भूमाफिया के सरगना नहीं थे। राज नारायण नाम के व्यक्ति को ही लो। जिये 69 वर्ष। जेल गए 80 मर्तबा। जेल में बिताए कुल 17 वर्ष। उनके विरुद्घ दर्जनों अपराध दर्ज थे। अपराध का ब्यौरा क्या रहा? धारा 144 तोड़कर जृलूस निकालना, किसानों की समस्या के लिए आंदोलन करना, अंगरेजी हटाने के लिए धरना देना, भ्रष्टï व्यवस्था का भांडा फोडऩे के लिए जन-जाग्रति करना या ऐसा ही कुछ। इतने वर्ष तो गांधी जी ने भी जेल में नहीं बिताए। महात्मा गांधी के आंदोलन की कृपा से स्वतंत्रता पाकर गांधीवादी चोगा ओढ़े हुए सत्ता -सिंहासन संभालने वाले किसी और नेता के इतने वर्ष जेल काटने की कल्पना ही व्यर्थ है। गांधी जी और स्वतंत्रता संग्राम सैनिकों को विदेशी सरकार ने स्वाधीनता मांगने के कारण कारावास दिया था। स्वतंत्र भारत में समता, बंधुत्व, और सद्भाव की खातिर कम लोगों ने जीवन का इतना हिस्सा प्रताडऩा सही। इसलिए उन्हें आदर से नेताजी और लोकबंधु कहा गया।
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राज नारायण जी बरसों संसद में रहे। अनेक चुनाव लड़े। कुछ जीते। कई हारे। रायबरेली से लोकसभा चुनाव में हार के बाद न्यायालय की शरण ली। चुनाव याचिका दायर की। आरोप प्रमाणित हुआ कि इंदिरा गांधी ने शासकीय पद पर बैठे यशपाल कपूर के माध्यम से सत्ता क ा दुरुपयोग कि या। आत्मरक्षा के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपात्काल जैसे दुतरफा हथियार का प्रयोग किया जो उनके सहित पूरी सरकार को ले डूबा। आपात्काल में जेल काटने वाले राज नारायण 1977 में सत्ता मिलने के बाद मंत्री बने। कहा जाता है कि आपात्काल के दौरान जेल में राज नारायण जी की आस्था फिर बलवती हुई। आपात्काल का इतिहास अंकित करने वालों ने इस पक्ष की अनदेखी की वरना पता लगता कि राज नारायण की अति धार्मिकता का कारण क्या था? यह सही है कि जेल ने कई व्यक्तियों को अध्यात्म की तरफ मोड़ा। बड़ोदा बारूद कांड में गिरफ्तार होने के बाद जार्ज फर्नांडीस जेल की कोठरी में श्रीमद्भगवदगीता का पाठ कर जन्म और मरण के भय से विरक्त रहना सीखे। राज नारायण यानी लोकबंधु की धार्मिकता का दिलचस्प पहलू भी है। किसी समय महान चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार बतलाते हुए चित्र बनाया। हुसैन ने डा राम मनोहर लोहिया की प्रेरणा से राम कथा का अंकन किया था। इसलिए हुसैन और राज नारायण सखा और सहविचारी थे। बांग्लादेश की मुक्ति के बाद हुसैन ने इंदिरा गांधी को दुर्गा बना दिया। सिंह पर सवार। 1977 में आपात्काल से मुक्ति के बाद नेताजी मंत्री बने। किसी परिचित के साथ हुसैन राज नारायण जी क ी कोठी में पहुंचे। नेताजी मालिश करा रहे थे। स्वागत किया। अपनत्व भरी बातें की-लेकिन यह कहने से नहीं चूके कि तुमने आज़ादी का गला घोंटने वाली को दुर्गा बना कर गलत किया। यह थी उनकी पारदर्शिता। वे मुंहफट थे। लेकिन उनकी बोलने की शैली दिलचस्प थी।
गौ माता की सेवा का दंभ भरने वाले कुछ लोग गोरक्षा के नाम पर मासूमों पर हमला करना वीरता समझते हैं। इस बात का उन्हें पता नहीं होगा कि 1980 के दशक में खाद्य तेल में पशु चर्बी की मिलावट कांड तूल पकड़ चुका था। सरकार कार्रवाई करने में हीला हवाला कर रही थी। राज्यसभा सदस्य राज नारायण बार बार तत्कालीन वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को फोन कर जांच की मांग करते। वी पी सिंह इतने परेशान हो गए कि राज नारायण से फोन पर बात करना बंद कर दिया। क र्मचारी बहाना करता कि मंत्री जी की तबियत ठीक नहीं है। राज नारायण तो राज नारायण। संसद में खड़े हो गए। सवाल किया कि सरकार इतनी निकम्मी है कि अपने मंत्री का उपचार नहीं करा सकती। सब चकित। अपनी खास अदा में राज नारायण ने वित्त मंत्री का किस्सा सुनाया। ठहाके लगे। नेताजी वे इसलिए ही तो कहलाए। लोहिया के कहे शब्दों को जीवन में उतार कर उन्होंने राजनीति को तात्कालिक धर्म माना और धर्म को दीर्घकालीन राजनीति। ताकि समतावादी समाज की स्थापना के लक्ष्य से पीछें न हटें। कभी समाजवादी जीवनव्रती रघुठाकुर से मिलकर पूरा किस्सा अवश्य सुनें।
भ्रष्टïाचार और परिवारवाद का इतना बोलबाला है कि अपने को समाजवादी परिवार का अंग समझने वाले भी कीचड़ में लोटने में आनंद का अनुभव करते हैं। शुचिता और समाजवाद को कदाचार और कुटुम्ब की टोपी पहनाकर पिछड़े पावें सौ में साठ और जेल और कुदाल की याद दिलाने वालों की कथनी और करनी में अंतर है। लोकबंधु ने किसी परिवारजन के लिए प्रयास नहीं किया। उनका जीवन-व्रत रहा-संघर्ष करो। बढ़ो।
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अंगरेजी हटाओ आंदोलन राज नारायण जी के लिए जीवन-मूल्य था। दिल्ली के नामी अंगरेजी स्कूल के विद्यार्थी अटल बहादुर सिंह उस पल को बार बार याद करते हैं। सरदार अटल बहादुर सिंह नागपुर पहुंचकर समाजवादी आंदोलनों से जुड़े। महापौर बने। उनके विचार और श्रम की बदौलत नागपुर में डा राम मनोहर लोहिया की स्मृति में 24 घंटे खुला रहने वाला वातानुकूलित वाचनालय एवं ग्रंथालय उस बस्ती में बना जिसे चमारनाला कहा जाता था और जहां दलित-दमित वर्ग के लोग बहुतायत से रहा करते थे। भारतीय भाषाओं का अध्ययन कर लोहिया वाचनालय से अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले लोग समझें कि लोहिया के हनुमान राज नारायण ने अपने आंदोलन से विचारों को कितने गहरे तक बदला।
संसदीय राजनीति में नेताजी की हड़बोंग और सनक से कई बदलाव हुए। कई बार समाजवादी आंदोलन को झटका लगा। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि राजनारायण न अड़ते तो देश को चौघरी चरण सिंह जैसा किसान प्रधानमंत्री न मिलता जिसने पद की खातिर समझौता करने से इन्कार किया। राज नारायण जी को आदर से नेताजी और लोकबंधु कहने वालों के अपने तर्क हैं। अनेक वर्ष संसद के समाचारों का संकलन करने तथा संसद से संबंधित शोध के बाद आदर करने वालों की जमात में खड़ा मैं कई बार भावुक हुआ। तब भी, जब संसद के कामकाज का सीधा टी वी प्रसारण नाम के विषय पर लोकसभा के सेवानिवृत्त महासचिव शकधर जी से बात की। शकधर जी ने याद दिलाया कि समाजवादी किस तरह पीठ और संविधान का सममान करते थे। डा लोहिया के साथ ही उन्होंने मधु लिमये के तर्क एवं विनयशीलता को याद किया तब तक ठीक था। उन्होंने बताया-पुलिस ने आंदोलन करने वाले समाजवादी कार्यकर्ताओं को पीटा। समाजवादी संसद सदस्य सदन के अंदर प्रतिवाद करते तक मार्शल उन्हें धकियाते। डाकर बाहर निकालते। राज नारायण जैसे पहलवान को बाहर निकालना हंसी खेल नहीं था। राजनारायण की महानता का सबसे बड़ा परिचय यह है कि उन्होंने कभी प्रतिकार में हाथ नहीं उठाया। संसद की गरिमा, स्वाभिमान की बात करने वाले संसद का सममान करने में उनसे कोसों पीछे हैं।
दोष देने वाले विशेषज्ञ और राजनीतिक आसानी से भूल गए कि समाजवादियों नेकितनी फब्तियां सही थीं? डा लोहिया, मधु लिमये, राजनारायण, जार्ज फर्नांडीस, गौड़े मुराहरि, कर्पूरी ठाकुर से आरम्भ करें। 1977 के बाद वाली पीढ़ी तक कोई नहीं बचा। बेशक लोहिया को अराजक कहिये, मधु जी केा जनता तोड़क और राज नारायण को सिरफिरा कहते रहिए। पल भर इतना विचार करिए कि उनका यह दीवानापन देश और देशवासियों की विषमता दूर करने की आतुरता से पैदा हुआ था। आज के खोखले बड़बोलेपन और बयानबाजी का उसमें लेशमात्र भी नहीं है।
प्रकाश दुबे
मो-9764440022
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3 Dec
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